RSS अब भाजपा के मामलों में सीधा दखल नहीं देगा…संघ ने बदली रणनीति
आरएसएस और भाजपा में नई व्यवस्था: संघ ने बदली रणनीति

नागपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी राजनीतिक शाखा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को नियमित तौर पर प्रचारक देने की व्यवस्था को बदल दिया है। अब संघ भाजपा के मामलों में सीधा दखल नहीं देगा, बल्कि सहयोग जारी रखेगा।
क्या है नई व्यवस्था?
सूत्रों के अनुसार, संघ ने भाजपा को प्रचारक नहीं देने का निर्णय किया है, लेकिन मौजूदा प्रचारक अपने पदों पर बने रहेंगे। अपवाद स्वरूप एकाधिक प्रचारक भेजे भी जा सकते हैं। संघ का ध्यान अब अपने कार्य विस्तार पर ज्यादा होगा।
क्यों बदली रणनीति?
सूत्रों के अनुसार, संघ की चिंता है कि उसके प्रचारक भाजपा में राजनीति में ज्यादा उलझ गए हैं और संगठनात्मक कार्यों पर कम ध्यान दे रहे हैं। इसके अलावा संघ का काम बढ़ा है और उसे लगता है कि शताब्दी वर्ष में सिर्फ राजनीतिक क्षेत्र में काम करने के बजाय अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देना चाहिए।
भाजपा की नई रणनीति
भाजपा ने भी अपनी रणनीति बदली है और संघ के मूल मुद्दों पर ध्यान बढ़ाने का निर्णय किया है। दोनों संगठनों ने अपनी सीमा तय कर ली है और एक दूसरे की जरूरत को समझते हुए सहयोग जारी रखने का निर्णय किया है।
संघ के प्रचारकों की भूमिका
संघ के प्रचारकों की भूमिका संगठनात्मक कार्यों में महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जब वे भाजपा में शामिल होते हैं तो उनकी भूमिका राजनीतिक हो जाती है।
राजनीति में उलझने के कारण:
- भाजपा की सत्ता में आने के बाद, संघ के प्रचारकों को राजनीतिक कार्यों में अधिक शामिल होना पड़ा।
- संघ के प्रचारकों को भाजपा के संगठनात्मक कार्यों में भी शामिल होना पड़ता है, जिससे वे राजनीति में अधिक उलझ जाते हैं।
- कुछ प्रचारकों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण भी राजनीति में अधिक शामिल होना शुरू कर दिया।
परिणाम:
- संघ के प्रचारकों की संगठनात्मक कार्यों में कमी आई।
- संघ के मूल उद्देश्यों से ध्यान हट गया।
- संघ और भाजपा के बीच तनाव बढ़ने लगा।
अब संघ ने अपने प्रचारकों को संगठनात्मक कार्यों में अधिक शामिल करने का निर्णय किया है, जिससे वे अपने मूल उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
क्या होगा आगे?
अब देखना यह होगा कि यह नई व्यवस्था दोनों संगठनों के लिए कितनी फायदेमंद साबित होती है और इसका राजनीतिक परिणाम क्या होगा।