KORBA:अवैध हिरासत पर सिटी मजिस्ट्रेट को फटकार के साथ जुर्माना, हाईकोर्ट नाराज
0 इनकी गलती पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भरेगी राज्य सरकार
कोरबा। पति-पत्नी के विवाद में गलत कार्रवाई करते हुए सिटी मजिस्ट्रेट द्वारा पति को अवैध हिरासत में जेल भेजने से क्षुब्ध होकर लगाई गई याचिका पर हाईकोर्ट ने फटकार लगाई है। न्यायाधीश ने इसे एक नागरिक के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन कहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं विभू दत्त गुरु ने इसे अवैध हिरासत करार देते हुए इस मामले में प्रतिवादी रहे सिटी मजिस्ट्रेट कोरबा, एसपी, एडिशनल कलेक्टर समेत राज्य शासन को फटकार लगाते हुए 25 हजार का जुर्माना किया है, जिसका भुगतान 30 दिन के भीतर करने के निर्देश दिए गए हैं।
ईडब्ल्यूएस फेस-2 एमपी नगर थाना सिविल लाइन रामपुर निवासी बाल्कोकर्मी लक्ष्मण साकेत पिता गोकुल साकेत 29 वर्ष के अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला ने बताया कि सिटी मजिस्ट्रेट गौतम सिंह (एडिशनल कलेक्टर) ने लक्ष्मण और पत्नी के बीच विवाद पर धारा 107, 116 के तहत प्रस्तुत पुलिस इश्तगाशा पर कार्यवाही की। अधिवक्ता ने जमानत आवेदन पेश किया तो जमानत दे दिया पर जब न्यायालय से छोडऩे का समय आया तो शाम पांच बजे सॉल्वेंट श्योरिटी के शर्त लगा दी गई। शाम हो जाने के कारण लक्ष्मण की ओर से उनके अधिवक्ता सॉल्वेंट श्योरिटी पेश नहीं कर सके, जिसके चलते लक्ष्मण को गलत तरीके से जेल भेज दिया गया।
अधिवक्ता ने बताया कि यहां सिटी मजिस्ट्रेट को सॉल्वेंट श्योरिटी मांगने का अधिकार ही नहीं था। इस मामले में लक्ष्मण की ओर से हाईकोर्ट अधिवक्ता आशुतोष शुक्ला द्वारा उच्च न्यायालय बिलासपुर में रिट पिटिशन (क्रिमिनल)पेश किया गया।
इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने राज्य शासन को कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की है कि यह एक ग्रास वाइलेशन है, जिसमें एक नागरिक के जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन किया गया है। उच्च न्यायालय ने इस मामले में कोरबा कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, सिटी मजिस्ट्रेट व पुलिस अधीक्षक समेत सभी संबंधितों को दोषी पाते हुए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।
0 …तो न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता
इस तरह के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णयों और कानून के प्रावधानों के आलोक में, यह स्पष्ट है कि केवल संदेह के आधार पर, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। जिसके खिलाफ संज्ञेय या गैर-जमानती अपराध का गठन नहीं किया गया है और उसे न्यायिक हिरासत में नहीं भेजा जा सकता है। इसके विपरीत, ऐसे व्यक्ति को मामले को जमानती मानते हुए सीआरपीसी की धारा 436 के तहत शक्ति का प्रयोग करके जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को जांच एजेंसी द्वारा गिरफ्तार किया गया था, उसे संबंधित न्यायालय के समक्ष पेश किया गया और जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।