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KORBA:बड़मार का सचिव नदारद,हितग्राही परेशान, जिला CEO का निर्देश जनपद की टोकरी में

0 राशन कार्ड,सामाजिक सुरक्षा के हितग्राही भटक रहे, तेंदूपत्ता संग्राहकों का बीमा लेप्स होने की कगार पर

कोरबा। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय की सरकार सुशासन पर जोर दे रही है और जिला कलेक्टर अजीत वसंत द्वारा कर्तव्यों के निर्वहन पर शासकीय कर्मचारी और अधिकारियों को बार-बार हिदायत दी जा रही है कि वह अपने कार्यों का निष्ठा से निर्वहन करें। हितग्राहीमूलक कार्यों में किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दूसरी तरफ करतला जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत बड़मार का सचिव लखनलाल जायसवाल अपनी मनमानी कर रहा है। 26 फरवरी 2024 से उसकी पदस्थापना पंचायत में हुई है लेकिन उसके दर्शन आज तक नहीं हुए हैं। अगर आना भी हुआ तो इस लंबी अवधि में एक-दो बार ही पंचायत पहुंचा।
इस संबंध में गांव के सरपंच रमेश कुमार राठिया द्वारा जिला CEO के समक्ष 14 जुलाई को शिकायत कर आग्रह किया गया था कि यहां अन्य सचिव की पदस्थापना की जाए। CEO ने इस संबंध में मौखिक तौर पर करतला जनपद सीईओ को निर्देशित करने की बात कही लेकिन करतला CEO ने आदेश को शायद रद्दी की टोकरी में डाल दिया है।
सरपंच ने सत्यसंवाद को बताया कि सचिव के पंचायत नहीं आने से जन्म-मृत्यु पंजीयन संबंधी कामकाज से लेकर, राशन कार्ड,परिवार सहायता योजना से लेकर पंचायत आधारित हितग्राहीमूलक योजनाओं के लाभ से संबंधितों को वंचित होना पड़ रहा है। तेंदूपत्ता संग्राहकों का बीमा राशि की अवधि लेप्स होने की कगार पर पहुंच गई है। जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के अभाव में बीमा संबंधी कामकाज नहीं हो पा रहे हैं। इसी तरह शासन की महत्वाकांक्षी तीर्थ यात्रा कराने की योजना को लेकर भी दिक्कतें पेश आ रही हैं। लोकसभा चुनाव में सरपंच के द्वारा खर्च की गई राशि का भी भुगतान नहीं हो पा रहा है। और भी कई तरह के सचिव आधारित कामकाज को लेकर पंचायत में दिक्कत पेश आ रही हैं लेकिन सचिव है कि वह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़े हुए है। कार्य स्थल पर उपस्थित नहीं होने का कोई कारण भी उसके द्वारा सरपंच अथवा किसी भी पंचायत प्रतिनिधि को नहीं बताया गया है। सचिव के रवैये से पंचायत के प्रतिनिधि परेशान हैं लेकिन इससे ज्यादा हैरान-परेशान करने वाली बात यह है कि जिला से लेकर जनपद के अधिकारी को अवगत कराए जाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है।
इससे समझा जा सकता है कि अधिकारियों के आदेश और निर्देश किस तरह से हवा में ही तैरते रहते हैं, धरातल पर उसका पालन काफी कम होता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ शासन की मंशा और हितग्राहियों को मिलने वाले लाभ का इरादा कैसे पूरा हो पाएगा?

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