दो राजपत्रित अधिकारी भी नहीं संभाल पा रहे ट्रैफिक व्यवस्था, निगम के अधिकारी भी उदासीन
0 शहर सहित जिले में बिगड़ रहा यातायात, वाहन धारक हो रहे लापरवाह, व्यवसायी भी कम जिम्मेदार नहीं
कोरबा। एक प्रचलित कहावत है कि- “मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की…। यह कहावत कोरबा जिले खासकर शहर और उपनगरीय व्यस्त क्षेत्र में बिगड़ते यातायात की व्यवस्था को लेकर चरितार्थ हो रही है। कलेक्टर और एसपी मिलकर व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ-साथ होने वाले हादसों पर नियंत्रण के लिए लगातार प्रयासरत हैं और निर्देश दे रहे हैं लेकिन यह जनता भी समझ नहीं पा रही कि आखिर व्यवस्था सुधारने की बजाय और बिगड़ती क्यों जा रही है? पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ तिवारी ने दो राजपत्रित अधिकारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नेहा वर्मा और डीएसपी बेनेडिक्ट मिंज को यातायात व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी दी है। दो-दो अधिकारी मिलने के बाद भी यातायात व्यवस्था जस की तस है।
मंगलवार रात निहारिका क्षेत्र में एक कार चालक के द्वारा जिस तरह से पांच लोगों को चपेट में लिया गया और उनमें से बाइक सवार दो लोगों की मौत हो गई, तो यह मामला और भी गंभीर हो जाता है। राजपत्रित अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपने के बाद माना जा रहा था कि व्यवस्थाएं बहुत हद तक दुरुस्त होंगी लेकिन ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। दूसरी तरफ नगर पालिक निगम का प्रशासनिक और मैदानी अमला जिसके ऊपर महती जिम्मेदारी है कि वह दुकानों का बेहतर व्यवस्थापन करे लेकिन बिगड़ती यातायात व्यवस्था के लिए उसका कोई सहयोग सुधार के मामले में दिखता नजर नहीं आ रहा है। निगम के अधिकारी कुछ बड़ा होने पर शहर का एक चक्कर लगाकर यह बताने की कोशिश जरूर करते हैं कि हम अपना कर्तव्य निभा रहे हैं लेकिन उनकी उदासीनता और कर्तव्य के प्रति विमुखता ने लोगों की जान लेने और घायल करने का काम ही किया है।
छोटे से दायरे में सिमटा शहर कोसाबाड़ी चौक से शुरू होकर सीतामढ़ी में खत्म हो जाता है और इसी क्षेत्र में व्यवस्था काफी बदहाल दिखती है। कोरबा पुराना शहर की बात करें या नए विकसित निहारिका और कोसाबाड़ी क्षेत्र की या फिर vip बुधवारी मार्ग के आसपास होते विकास की या फिर तेजी से बढ़ते अतिक्रमण का मामला हो, यह सब नगर निगम के अधिकारियों की जानकारी में है। जहां अव्यवस्थित विकास हो रहा है, वे वहां भी अपना पल्ला झाड़ने लगे हैं और देखकर भी अनदेखा करते हैं। प्रशासनिक अधिकारियों को अवैधानिक कार्यों के मामले में शिकायत का इंतजार की कोई आवश्यकता ही नहीं लेकिन फिर भी वह जागती आंखों से सब कुछ देखकर अनजान है। यातायात व्यवस्था बनाने में नि:संदेह नगर निगम के प्रशासनिक और मैदानी अमले का कोई भी सहयोग नहीं मिल रहा है वरना शहर की सूरत कुछ और होती।
निगम के व्यावसायिक परिसर से लेकर निजी तौर पर निर्मित दुकानों के अनेक संचालकों द्वारा सड़क तक सामान बिखेरने, सड़क के किनारे क्षेत्र में विभिन्न तरीके से निर्माण करा कर अतिक्रमण करने की वजह से दो पहिया से लेकर चार पहिया वाहनों का ठहराव सड़क पर हो रहा है। व्यवसायी को अपनी दुकानदारी से मतलब है और ग्राहक को खरीदारी से, लेकिन इस बीच अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन दोनों नहीं करते।
शहर में बड़े पैमाने पर ठेलों की संख्या बढ़ गई है। करोड़ों के फुटपाथों पर बेतहाशा कब्जा है तो पैदल चलने वाले भी सड़क पर चल रहे हैं। वाहनों के चालक दिनों दिन लापरवाह होते जा रहे हैं। 18 साल की उम्र भी नहीं हुई कि हाथों में वाहनों की स्टेरिंग थमा दी जा रही है, अप्रशिक्षित कुशल हाथों में में स्टेयरिंग हादसे कर रहे हैं तो दूसरी तरफ नशा की हालत में वाहन चलाने वालों की भी भरमार है जो कोढ़ में खाज का काम करते हैं।
यदा–कदा चलने वाले अभियान को नियम तोड़ने वाले भाँप चुके हैं जबकि यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए। फुटपाथों को अतिक्रमण से मुक्त करने की जरूरत बनी है। सड़क तक लगने वाले बेतहाशा ठेले खोमचों को व्यवस्थित करने की जरूरत है। वे भले मजबूर हैं लेकिन मजबूरी की आड़ में व्यवस्था तो न बिगाड़ें। वाहन चालकों/मालिकों को भी चाहिए कि वह सड़क पर अपनी गाड़ी खड़ी कर खरीदारी करने से बाज आएं वरना सड़क से गुजरने वालों को ऐसे बेतरतीब खड़े वाहनों से बचकर निकलने के लिए आड़ा-टेढ़ा होना पड़ता है और इस प्रयास में दूसरों की जान आफत में आ जाती है। नगर निगम और पुलिस विभाग को समन्वय बनाकर काम करने की जरूरत है जिसका अभाव लंबे समय से शहर की जनता स्वयं महसूस कर रही है। जनप्रतिनिधियों को भी चाहिए कि वह वोट बैंक की राजनीति छोड़कर व्यवस्था को दुरुस्त करने में प्रशासन का सहयोग करें। शीर्ष अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश देकर उसका पालन भी सुनिश्चित कराएँ तब कहीं जाकर कुछ हासिल हो सकेगा वरना कुर्सी तोड़कर सरकारी वेतन पाने वाले वर्षों से जमे अधिकारी सब कुछ देखकर, जानकर भी अंजान बने ही रहेंगे और हादसे होते रहेंगे, शहर और बदसूरत होता जाएगा, मनमानियां बढ़ती रहेंगी। जब लापरवाह लोग बेलगाम होने लगें तो पुलिस-प्रशासन को सख्त होना ही पड़ेगा, जनप्रतिनिधियों को भी सड़क पर उतर कर समझाना पड़ेगा, वरना कानून को जेब में लेकर चलने वाले बढ़ते ही जाएंगे।