आवास मित्रों पर मेहरबान रहे जनपद CEO, अब सचिवों पर लटकी तलवार
0 पूर्व की ऑडिट पर सवाल,कागजों में बने आवास,जियो टैगिंग में खेला
0 अपूर्ण आवासों को पूर्ण कराने के साथ हितग्राहियों पर एफआईआर कराने का भी दबाव
कोरबा। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण का कोरबा जिले में हाल कुछ ठीक नहीं है। ग्रामीण और दूरस्थ अंचलों में इस योजना के नाम पर जहां एक समय कुछ को छोड़कर अनेक आवास मित्रों ने राशि की बंदरबांट की और जनपदों के सीईओ आंखे मूंदे बैठे रहे, मेहरबान रहे वहीं आवास बनवा देने का झांसा देकर रुपए ऐंठने वाले आवास मित्र मजे में रहे। अब प्रधानमंत्री आवास योजना को लेकर सरकार बदलने के बाद प्रशासन ने सुध ली तो पता चल रहा है कि योजना का पहला किश्त जारी होने के बाद काम शुरू ही नहीं हुआ और रुपए खर्च कर लिए गए। अब पंचायत सचिवों पर वेतन रोकने की तलवार लटक चुकी है।
जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संबित मिश्रा द्वारा उप संचालक पंचायत सहित जनपद पंचायत कोरबा, करतला, पाली, पोड़ी उपरोड़ा को पत्र जारी कर कहा गया कि प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के अंतर्गत 24 फरवरी से 27 मार्च 2024 तक स्वीकृत आवासा में से न्यूनतम 30 आवास अपूर्ण रहने के बाद भी 60 प्रतिशत से कम प्लिंथ निर्माण कार्य पूर्ण नहीं करने वाले सचिव का वेतन रोकने की कार्रवाई किया जाना सुनिश्चित करें। जिला सीईओ के इस निर्देश के बाद सचिवों में हडक़ंप मच गई। जिले के पांचों ब्लॉक के कुल 124 सचिवों के लिए यह आदेश जारी हुआ जिनके क्षेत्र में कार्य अपूर्ण है।
इस निर्देश के बाद हरकत में आये सचिवों ने अपने-अपने क्षेत्र में मौका-मुआयना शुरू कर दिया तो वहीं जनपद सीईओ भी मैदान पर उतरे। ज्ञात हुआ कि सरकार ने प्रथम किश्त के तौर पर जो 25 हजार रुपए की राशि जारी किया था, उसे खा-पीकर डकार गये हैं। ऐसे लोगों पर एफआईआर दर्ज कराने की बात सचिवों को कही गई लेकिन सचिव पशोपेश में पड़ गए कि वे आखिर एफआईआर किस आधार पर दर्ज कराएंगे क्योंकि योजना डीबीटी पर आधारित है और गबन कैसे साबित करेंगे?
0 1.20 लाख में बनना है आवास
सचिवों ने बताया कि आवास योजना के ेतहत सरकार कुल 1 लाख 20 हजार रुपए हितग्राही को दे रही है जिसमें 25 हजार रुपए प्रथम किश्त, प्लिंथ लेबल पर कार्य उपरांत दूसरी किश्त 40 हजार फिर तीसरी किश्त 40 हजार और रूफ लेबल पर ढलाई के लिए चौथी किश्त 15 हजार रुपए दिया जाना है। इसके अलावा 15 हजार रुपए मजदूर भुगतान अलग से मिलता है। 1 लाख 20 हजार रुपए में नियमत: एक कमरा रसोईघर के साथ निर्माण का प्रावधान है लेकिन अधिकांश लोगों ने कार्य शुरु ही नहीं किया।
0 पूर्व की ऑडिट पर सवाल,कागजों में बने आवास,जियो टैगिंग में खेला
प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण वर्ष 2016-17 से प्रारंभ है और इस समय से स्वीकृत आवासों में से अधिकांश आज भी या तो शुरू ही नहीं हुए या तो अपूर्ण हैं। 2016-17 से लेकर 2023-24 तक ऐसे हजारों अधूरे आवास हैं जो निर्माण की राह ताक रहे हैं। योजना के प्रारंभ में आवास मित्रों के जिम्मे निर्माण कार्य होता था जिसमें कई आवास मित्रों ने भोले-भाले आदिवासी ग्रामीणों की अज्ञानता का फायदा उठाकर किश्त की अधिकांश राशि हितग्राही से प्राप्त कर ली लेकिन आवास नहीं बनवाया। इन पैसों से आवास मित्रों ने अपने सुख-सुविधाओं में वृद्धि की। ऐसे मामले पहले भी संज्ञान में लाये जा चुके हैं लेकिन आज तक किसी भी मामले में न तो कार्रवाई हुई न ही एफआईआर कराया जा सका है जबकि जनपद स्तर पर इसकी जांच भी हुई थी। कई आवासों में जियो टैगिंग का खेल भी चला जिसमें पूर्ण आवास का एंगल बदल कर और नाम बदल-बदल कर फोटो खींचकर सरकार व अधिकारियों को गुमराह किया जाता रहा। महत्वपूर्ण यह भी है कि योजना का ऑडिट भी हर साल होता रहा और कागजों में सब कुछ ओके दिखाते रहे, तो क्या पुरानी फाइलें खंगाली जाएंगी।