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भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘ ‘भीष्म पितामह ‘…मनमोहन सिंह को उनकी विश्वसनीयता और बुद्धिमत्ता की वजह से भरपूर सम्मान मिला.

मनमोहन सिंह देश के ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो सबसे ज्यादा शिक्षित थे। प्रखर अर्थशास्त्री थे और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने वाले पहले अल्पसंख्यक भी थे। जब 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में देश में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ, तब वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ही थे। इसके बाद उन्होंने 2004 से 2014 तक केंद्र में यूपीए की सरकार का नेतृत्व किया। वे 10 साल प्रधानमंत्री रहे। बराक ओबामा जैसे तत्कालीन विश्व नेता आर्थिक मामलों पर मनमोहन सिंह की समझ के कायल रहे। भारत में जब भी उदारीकरण की शुरुआत और लाइसेंस राज के खात्मे की बात की जाएगी तो इसकी शुरुआत डॉ मनमोहन सिंह के नाम के साथ ही होगी।

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गुरुवार को 92 साल की उम्र में निधन हो गया. मनमोहन सिंह लगातार दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे और उनकी व्यक्तिगत छवि काफी साथ-सुथरी रही.

भारत में आर्थिक सुधारों का श्रेय उन्हें ही जाता है. फिर चाहे उनका 2004 से 2014 का प्रधानमंत्री का कार्यकाल रहा हो या फिर इससे पूर्व वित्त मंत्री के रूप में उनका कामकाज.

मनमोहन सिंह के नाम एक और उपलब्धि दर्ज है, वह जवाहरलाल नेहरू के बाद पहले भारतीय थे, जो लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. मनमोहन सिंह ने 1984 के सिख दंगों के लिए संसद में माफ़ी मांगी थी. 1984 में हुए सिख दंगों में लगभग 3000 सिख मारे गए थे.

मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल खासा चर्चित रहा. इस दौरान भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए. कई लोगों का मानना है कि इन घोटालों की वजह से ही 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.

मनमोहन सिंह साल 1991 में भारत के वित्त मंत्री के तौर पर उभरे, ये ऐसा दौर था जब देश के आर्थिक हालात बहुत ख़राब थे.

उनकी अप्रत्याशित नियुक्ति ने उनके लंबे और सफल करियर को नई ऊंचाई दी. उन्होंने एक शिक्षाविद और नौकरशाह के रूप में तो काम किया ही, सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में भी योगदान किया और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रहे.

वित्त मंत्री के रूप में अपने पहले भाषण में उन्होंने विक्टर ह्यूगो का हवाला देते हुए कहा, “इस दुनिया में कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है.”

ये भाषण उनके महत्वाकांक्षी और अभूतपूर्व आर्थिक सुधार कार्यक्रम की शुरुआत थी. उन्होंने टैक्स में कटौती की, रुपये का अवमूल्यन किया, सरकारी कंपनियों का निजीकरण किया और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया.

इससे अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, उद्योग तेजी से बढे़, बढ़ रही महंगाई पर काबू पाया गया और 1990 के दशक में विकास दर लगातार ऊंची बनी रही.

मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी कामयाबी प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता था.

उनके समय में ये ऐतिहासिक समझौता हुआ और इसकी बदौलत अमेरिका की परमाणु टेक्नोलॉजी तक भारत की पहुंच बन गई.

अपने विदेश नीति में, मनमोहन सिंह ने अपने दो पूर्ववर्तियों की व्यावहारिक राजनीति को आगे बढ़ाया. उन्होंने पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया जारी रखी, लेकिन इसमें उन हमलों के कारण रुकावट आई, जिनका आरोप पाकिस्तानी चरमपंथियों पर लगा.

इसका चरम नवंबर 2008 के मुंबई हमले और बम धमाके में देखने को मिला.

उन्होंने चीन के साथ सीमा विवाद खत्म करने की कोशिश की और 40 साल से अधिक समय से बंद नाथू ला दर्रा फिर से खोलने के लिए समझौता किया.

मनमोहन सिंह ने अफ़गानिस्तान के लिए वित्तीय सहायता बढ़ाई और लगभग 30 वर्षों में वहां जाने वाले पहले भारतीय नेता बने.

साथ ही, उन्होंने भारत के पुराने सहयोगी ईरान से रिश्ते खत्म करने का संकेत देकर कई विपक्षी नेताओं को नाराज़ भी किया.

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