वरिष्ठ कांग्रेस नेता गिरिजा व्यास का निधन, आग लगने से बुरी कदर झुलस गई थी…अपने मुखर और निडर स्टैंड के लिए भी चर्चा में रहीं…
राजस्थान : पूर्व केंद्रीय मंत्री, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर गिरिजा व्यास का गुरुवार निधन हो गया . वो 78 साल की थीं.

परिवार के मुताबिक़ 31 मार्च, 2025 को उदयपुर के दैत्य मगरी स्थित अपने घर पर वह गणगौर पूजा कर रही थीं तभी एक दीपक की लौ से उनके कपड़ों में आग लग गई. इस हादसे में वे 90 प्रतिशत तक झुलस गई थीं. इस हादसे के बाद अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल में अंतिम सांस लेने वाली डॉ. व्यास झुलसने और ब्रेन हेमरेज के बाद कई दिनों तक ज़िंदगी से लड़ती रहीं, लेकिन आख़िरकार ये जंग वे हार गईं।
बता दे कि सार्वजनिक जीवन में गिरिजा अपने मुखर और निडर स्टैंड के लिए भी चर्चा में रहीं.
दिवराला सती प्रकरण पर गिरिजा ने खुलकर कहा, “सती हिन्दू विश्वास का हिस्सा कभी नहीं रही. पति के निधन पर उसकी देह के साथ पत्नी को जलाना एक अमानुषिक अत्याचार है.”
महिला आयोग की चेयरपर्सन के रूप में उनका कहना था कि महिला अत्याचारों के मामले में पार्टी-पॉलिटिक्स करना बहुत ख़राब बात है.
इन सबके बीच ख़ास बात यह है कि वे कवियत्री और शायर भी थीं.

पच्चीस वर्ष की आयु में राजस्थान विधानसभा की सदस्य बनीं
👉 डॉ. गिरिजा व्यास भारतीय राजनीति की एक ऐसी बुद्धिजीवी राजनीतिज्ञ रही, जिन्होंने चार बार भारतीय संसद में लोक सभा का प्रतिनिधित्व किया है। वह महज पच्चीस वर्ष की आयु में राजस्थान विधानसभा की सदस्य बनीं और कई मंत्रालयों का दायित्व संभालने का मौका मिला।
👉 नरसिम्हा राव सरकार में उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार में उन्होंने केंद्रीय कैबिनेट में शहरी आवास एवं गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। डॉ. व्यास राष्ट्रीय महिला आयोग की दो कार्यकाल तक राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रही है।
👉 वह राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद के अलावा लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक पद एवं बतौर एआईसीसी मीडिया प्रभारी भी रहीं है। फिलहाल अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के केंद्रीय चुनाव समिति के साथ-साथ विचार विभाग की चेयरपर्सन एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुखपत्र कांग्रेस संदेश पत्रिका की मुख्य सम्पादक रहीं।
डॉ गिरिजा व्यास के निधन की खबर से मेवाड़ शोक में डूब गया। उदयपुर की सड़कों, राजनीतिक गलियारों और साहित्यिक मंचों पर केवल एक नेता के जाने का शोक नहीं, एक युग की विदाई का दर्द महसूस किया गया।