CHHATTISGARHKORBA

भाकपा ने मनाया 98 वां स्थापना दिवस,पार्टी के संघर्षों को रेखांकित किया


कोरबा। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का 98 वा वर्षगांठ कोरबा रैन बसेरा में मनाया गया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व जिला सचिव कामरेड एम एल रजक द्वारा झंडा फहराया गया सभी साथियों द्वारा पुष्प अर्पित किया गया, उसके बाद सभी वरिष्ठ साथियों को मंच पर बैठा कर पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। मंच का संचालन जिला सचिव पवन कुमार वर्मा द्वारा किया गया, जिला सचिव ने पार्टी के संघर्षों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का स्थापना 26 दिसम्बर 1925 को कानपुर में हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी का गठन 17 अक्टूबर 1920 को कम्युनिस्ट इंटरनैशनल की दूसरी बैठक के तुरंत बाद हुआ था। 1920 से ही पार्टी के गठन की प्रक्रिया चल रही थी लेकिन औपचारिक रूप से 1925 में ही पार्टी का गठन हुआ। इसके शुरुआती नेताओ में मानवेन्द्र नाथ राय, अबनी मुखर्जी, मोहम्मद अली और शफ़ीक सिद्दीकी प्रमुख थे।कम्युनिस्टों के ख़िलाफ़ कानपुर बोल्शेविक षड़यंत्र के अंतर्गत मुकदमा दायर कर दिया था। एम.एन. राय, एस.ए. डांगे सहित कई कम्युनिस्टों पर राजद्रोह के आरोप लगाये गये। 20 मार्च 1929 को भाकपा से जुड़े बहुत से महत्त्वपूर्ण नेताओं को मेरठ षड़यंत्र केस में गिरफ्तार कर लिया गया। नतीजे के तौर पर पार्टी कमजोर हो गयी।


अपने गठन के बाद से देश की आज़ादी तक भाकपा की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आये। मज़दूर संगठन और देश के कुछ भागों में पार्टी की स्थिति काफ़ी मज़बूत हो गयी थी। बंगाल में हुए तेभागा आंदोलन और आंध्र प्रदेश में हुए तेलंगाना आंदोलन में भी कम्युनिस्टों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1946 में हुए तेभागा आंदोलन में बंगाल के जोतदारों ने इस बात के लिए संघर्ष किया कि उनके पास अपनी खेती के उत्पाद का दो-तिहाई भाग होना चाहिए। इस आंदोलन में भाकपा के किसान मोर्चे किसान सभा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और आंदोलन सफल रहा।
तेलंगाना आंदोलन हैदराबाद रजवाड़े में हुआ। आंध्र महासभा के बैनर तले हैदराबाद के निज़ाम के ख़िलाफ़ पहले ही आंदोलन चल रहा था। आंध्र महासभा में कम्युनिस्टों की अच्छी-ख़ासी उपस्थिति थी। इन्होंने किसानों को निज़ाम और स्थानीय ज़मींदारों (जिन्हें ‘देशमुख’ के नाम से जाना जाता था) के ख़िलाफ़ जागरूक बनाया। नालगोंडा, वारंगल और खम्मम जिलों में किसानों ने कर्ज़ माफ़ी, बंधुआ मज़दूरी ख़त्म करने और भूमि पुनर्वितरण के लिए आंदोलन चलाया। यह आंदोलन 1945 में शुरू हुआ और 1946 आते-आते इसने काफ़ी ज़ोर पकड़ लिया।
और वहाँ भूमि सुधार की नीतियों पर अमल किया। 1948 तक उन्होंने 3,000 गाँवों की तकरीबन 16,000 वर्ग मील भूमि को मुक्त करा लिया और उसका गाँव के लोगों के बीच वितरण कर दिया। पहले आम चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बहुत शानदार नहीं रहा लेकिन लोकसभा में 16 सीटों पर जीत हासिल करके यह मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी दूसरे चुनाव में 27 लोकसभा क्षेत्रों में जीत मिली। ग़ौरतलब है कि तीसरे आम चुनावों में भाकपा को 29 सीटों पर जीत मिली।
भाकपा अब भी संसद में कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। 1964 में भाकपा का विभाजन हो गया और एक नयी पार्टी माकपा का उभार हुआ।विभाजन के शुरुआती कुछ दशकों तक भाकपा का अच्छा-ख़ासा प्रभाव रहा। 1970-77 के बीच भाकपा ने कांग्रेस से गठजोड़ किया और उसके साथ मिलकर सरकार भी बनायी जिसमें भाकपा के सी. अच्युत मेनन राज्य के मुख्यमंत्री बने (4 अक्टूबर 1970-25 मार्च 1977)। इसके बाद, किसी राज्य में भाकपा को सत्ता में आने का मौका नहीं मिला।
1980 के बाद हुए लोकसभा चुनाव में 15 से कम सीटों पर ही जीत मिली। मसलन, 1980 के संसदीय चुनावों में 11, 1984 में 6, 1989 में 12, 1991 में 14, 1996 में 12, 1998 में 9, 1999 में 4, 2004 में 10 2009 में 4, 2014 में 1और 2019 में 2 सीटों पर जीत हासिल हुई। इस प्रकार पार्टी धनबल और जाति, धर्म , संप्रदाय, के बीच में संघर्ष करते हुए सिमट गई आज पूंजीवादी पार्टी चारों तरफ से घेराबंदी करती है। क्योंकि भाकपा समाजवाद, शिक्षा, चिकित्सा की समानता की बात होती है।,
82 वर्षीय कामरेड आसमती यादव ने अपने उद्बोधन में पूंजीवाद फासीवाद से लड़ने का मूल मंत्र बताएं एवं नारा लगाए (जब जब जुल्मी जुल्म करेगा सत्ता की गलियों से चप्पा चप्पा गुज उठेगा इंकलाब के नारों से, दुनिया के मजदूर एक हो पूंजीवाद मुर्दाबाद समाजवाद जिंदाबाद)कामरेड दीपेश मिश्रा, राम मूर्ति दुबे, एन के दास, राकेश मिश्रा, आर पी मिश्रा,सी आर आनंद , सुनील सिंह, मीना यादव, सुमित्रा लहरे विजयलक्ष्मी चौहान,फूलेन्दर पासवान सभी साथियों ने पार्टी के संघर्षों उद्देश्यों और आने वाले समय में पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए उद्बोधन दिये। स्थापना दिवस में उपस्थित ताराचंद कश्यप, मनोज प्रजापति ,आशीष कुमार, संतोष यादव, तवरेज अहमद, घोसीराम आनंद, आर के टंडन, सुखदेव महंत, हेमा चौहान, किरण चौहान, मनीष चौहान, यशोदा, लक्ष्मीन, रूपा, सुमित्रा, केवड़ा यादव, बिसम्मर प्रसाद,पी अयमो, विजय लक्ष्मी चौहान, इंद्राणी श्रीवास, बबली बरेढ, रंभा बाई, बुधवारिन, चिंता देवी, ज्योति देवी आदि सैकड़ो साथी उपस्थित थे।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker