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ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन वर्षीय लड़की के “संथारा” पर मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने लिया संज्ञान..

इंदौर में एक तीन वर्षीय बच्ची द्वारा संथारा लेने की घटना ने सभी को चौंका दिया है। इस बच्ची को ब्रेन ट्यूमर की बीमारी थी, और जैन मुनि के परामर्श पर उसे संथारा दिलाया गया। इसके कुछ ही मिनटों बाद बच्ची का निधन हो गया। इस घटना ने जैन समुदाय और देशभर में चर्चा का विषय बना दिया है। बच्ची को पिछले एक साल से गंभीर ब्रेन ट्यूमर का सामना करना पड़ रहा था, जिसका इलाज मुंबई में चल रहा था। बच्ची के माता-पिता, पीयूष और वर्षा जैन ने बताया कि जैन मुनि श्री के सुझाव पर संथारा की प्रक्रिया शुरू की गई। धार्मिक प्रक्रिया के कुछ ही समय बाद बच्ची का निधन हो गया। अब बच्ची की मौत के मामले में मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से जवाब मांगने का फैसला किया है

इंदौर, । मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के एक सदस्य ने सोमवार को कहा कि इस निकाय ने इंदौर में ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन वर्षीय लड़की को “संथारा” व्रत ग्रहण कराए जाने के बाद उसकी मौत के मामले का संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से जवाब मांगने का फैसला किया है।

संथारा, जैन धर्म की प्राचीन प्रथा है जिसका पालन करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से अन्न-जल और अन्य सांसारिक वस्तुएं छोड़कर प्राण त्यागने का फैसला करता है।

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हमने इंदौर में तीन साल की बच्ची को संथारा व्रत ग्रहण कराए जाने की घटना का मीडिया की खबरों के आधार पर संज्ञान लिया है। हमने इस मामले में इंदौर के जिलाधिकारी को नोटिस जारी करने का फैसला किया है।”

उन्होंने कहा कि आयोग खासतौर पर यह जानना चाहता है कि तीन साल की अबोध बच्ची “संथारा” के लिए कैसे अपनी सहमति दे सकती है?

सिंह ने बताया, “हम जिलाधिकारी को नोटिस जारी करने जा रहे हैं। नोटिस के जवाब के आधार पर उचित कदम उठाया जाएगा।” “संथारा” व्रत से प्राण त्यागने वाली लड़की के माता-पिता सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के पेशेवर हैं।

उनका कहना है कि उन्होंने 21 मार्च की रात एक जैन मुनि की प्रेरणा से अपनी इकलौती संतान को यह व्रत दिलाने का फैसला ऐसे वक्त लिया, जब वह ब्रेन ट्यूमर के कारण बेहद बीमार थी और उसे खाने-पीने में भी दिक्कत हो रही थी।

लड़की के माता-पिता के मुताबिक जैन मुनि द्वारा “संथारा” के धार्मिक विधि-विधान पूरे कराए जाने के चंद मिनटों के भीतर उनकी बेटी ने प्राण त्याग दिए थे।

उन्होंने यह भी बताया कि गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उनकी बेटी के नाम विश्व कीर्तिमान का प्रमाण पत्र जारी किया है जिसमें उसे “जैन विधि-विधान के मुताबिक संथारा व्रत ग्रहण करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्स बताया गया है।

जैन समुदाय की धार्मिक शब्दावली में संथारा को “सल्लेखना” और “समाधि मरण” भी कहा जाता है। इस प्राचीन प्रथा के तहत कोई व्यक्ति अपने अंतिम समय का आभास होने पर मृत्यु का वरण करने के लिए अन्न-जल और सांसारिक वस्तुएं त्याग देता है।

कानूनी और धार्मिक हलकों में “संथारा” को लेकर वर्ष 2015 में बहस तेज हो गई थी, जब राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस प्रथा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था। हालांकि, जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक निकायों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के इस आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी।

क्या होता है संथारा?

जैन समाज में संथारा एक व्रत या स्वेच्छा से मृत्यु को अपनाने की प्रक्रिया को कहा जाता है. जैन धर्म में इसे मृत्यु का महोत्सव भी कहा जाता है. संथारा में व्यक्ति धीरे-धीरे अन्न-जल का त्याग करने लगता है और अपनी मृत्यु तक उपवास करता है. इस मामले में बच्ची वियाना की स्थिति बेहद गंभीर होने की वजह से उसे संथारा कराकर विदा किया गया. जैन ग्रंथों के अनुसार जब कोई व्यक्ति या मुनि अपनी जिंदगी पूरी तरह जी लेता है और शरीर छोड़ना चाहता है तो संथारा लिया जा सकता है, या परिजनों द्वारा संथारा कराया जा सकता है. मान्यताओं के मुताबिक मुश्किल गंभीर बीमारियों में भी व्यक्ति संथारा ले सकता है. इसे संलेखना भी कहा जाता है.

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