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फिर ऐसा न हो…! स्कूल प्रबंधनों को सबक लेने की जरूरत

0 छात्र अमन के उठाये अप्रत्याशित कदम ने झकझोरा

कोरबा। बालको थाना क्षेत्र अंतर्गत संचालित डीपीएस स्कूल बालको के छात्र अमन साव की मौत ने झकझोरते हुए एक बार फिर शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठा कर स्कूलों की व्यवस्था को कटघरे में खड़ा किया है। टेस्ट परीक्षा में कम नम्बर लाने के लिए मिली फटकार से विचलित छात्र ने आत्मघाती कदम उठा लिया तो इसके लिए आखिर किसकी जवाबदेही तय होगी, यह जांच का विषय है लेकिन बच्चों के कोमल ह्रदय पर ऐसी फटकार का कितना गहरा और घातक असर पड़ सकता है, इस घटना से सबक लेना जरूरी है।
सेक्टर-1 के निवासी बालको अधिकारी सुवेन्दु शेखर साव का लगभग 15 वर्षीय पुत्र अमन साव डीपीएस बालको में कक्षा 10 वीं का छात्र था। शनिवार को सुबह 11 बजे स्कूल में पैरेंट्स-टीचर मीटिंग रखी गई थी जिसमें शामिल होने के लिए परिजन को बुलाया गया था। अपुष्ट तौर पर ऐसा बताया जा रहा है कि गणित (MATHS) विषय की टेस्ट परीक्षा में अमन कम नम्बर लाया था। कम नंबर लाने पर उसे जिस तरह से भी मीटिंग में कहा गया,नाराजगी जताई गई, किसी के द्वारा फटकारा गया होगा,उसने अमन के दिलो दिमाग पर विपरीत प्रभाव डाला और चन्द घण्टे के भीतर हंसते-खेलते परिवार में जीवन भर का मातम पसर गया।
अमन पढऩे में काफी होशियार था,टेस्ट में कम नंबर आने से कोई बड़ी बात नहीं हो गई थी। आगे और मेहनत करता तो सुधार सम्भव था लेकिन सुधार की बजाय इस तरह के ट्रीट ने उसे दुष्प्रेरित किया। वह व्यथित होकर हाथ में टेस्ट पेपर लिए स्कूल के पीछे के रास्ते से भागते हुए जंगल की ओर चला गया। इधर जैसे ही छात्र स्कूल से निकला, हड़बड़ाए परिजन और स्कूल स्टाफ उसे खोजने के लिए दौड़ पड़े। अधिकारी पुत्र के इस तरह चले जाने से हडक़म्प मच गया और बालको के अधिकारियों से लेकर सुरक्षा अमले ने उसकी तलाश में जंगल छानना शुरू कर दिया। स्कूल से करीब 4-5 सौ मीटर की दूरी पर जंगल में नदी के पास मौजूद पुराना कुआं में छात्र औंधे मुंह पड़ा नजर आया। सबके लिए अप्रत्याशित इस घटना से शोक की लहर दौड़ पड़ी।
0 प्रेरक और सकारात्मक माहौल देने की जरूरत
इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान समय में आधुनिकता की चकाचौंध और प्रायः हर हाथ में मोबाइल के युग में अनेक किस्म की अवांछित सामग्रियों के परोसे जाने से विचारों पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है। बच्चे,किशोर,युवा इससे ज्यादातर प्रभावित हैं व उनकी दिनचर्या से लेकर शिक्षा भी प्रभावित हो रही है। ऐसे में समस्त शिक्षण संस्थाओं में प्रेरक (मोटिवेशनल) और सकारात्मकता से पूर्ण कार्यक्रमों को समय-समय पर कराते रहने की जरूरत महसूस होने लगी है। बढ़ती उम्र के बच्चों को स्कूल से लेकर घर तक जो मनोवैज्ञानिक वातावरण मिलना/देना चाहिए,ताकि वे अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित हों,असफलता से निराश न हों, इस पर गंभीरता से पहल होनी चाहिये ताकि ऐसे छोटे से कारण फिर किसी घर का चिराग न बुझने दें।
0 मनोचिकित्सकों की कराएं कार्यशाला
परीक्षा परिणामों के साथ ही अनुशासनात्मक बातों को लेकर नाराजगी से ग़लत कदम उठाने की बच्चों में बढ़ती प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है। इसके लिए काउंसलिंग के अलावा हर आवश्यक कदम उठाना चाहिए। सभी तरह के स्कूलों में मनोचिकित्सक, समाजशास्त्री, शिशु रोग विशेषज्ञ के अलावा समाज के लिए प्रेरक लोगों की कार्यशाला होनी चाहिए ताकि अवसाद जैसे हालातों से विद्यार्थियों को निकाला जा सके। विपरीत हालातों में भी पूरे आत्मविश्वास के साथ बच्चे सामना करें, यह सोच विकसित करने की नितांत आवश्यकता बन पड़ी है।

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