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पाकिस्तान की लड़ाई में चीन एक छिपा हुआ शत्रु हो सकता है जो भारत को युद्ध में घसीटना चाहता है..

नई दिल्ली: शुक्रवार 9 मई को, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जर्मनी पर सोवियत संघ की जीत की 80वीं वर्षगांठ मनाने के लिए मास्को के रेड स्क्वायर पर एक भव्य परेड में भाग लिया. ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, रूसी राष्ट्रपति के साथ एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि ‘चीन और रूस को लंबे समय तक दोस्ती बनाए रखनी चहिए और सच्चे दोस्त बनना चाहिए जो सौ अग्नि परीक्षाओं से गुजर चुके हैं; पारस्पर लाभ और हमेशा जीत (Win-Win Outcome) का पीछा करना चाहिए. हमेशा अच्छे साझेदार बनना चाहिए जो एक-दूसरे को सफल होने में मदद करना चाहिए…’

जब से रूस ने यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू किया है, चीन रूस के समर्थन में खड़ा रहा है. चीन खुद को अमेरिका विरोधी गठबंधन के केंद्र के रूप में देखता है जो भू-राजनीति और अर्थव्यवस्था को आकार देगा. हालांकि, भारत अपने सबसे पुराने सहयोगी रूस के प्रति अपने नजरिए में संतुलित रहा है. लेकिन चीन भारत को क्वाड का सदस्य होने के कारण अमेरिका के नेतृत्व वाले खेमे का हिस्सा मानता है.

क्षेत्र में अमेरिका के कथित प्रभाव का मुकाबला करने के लिए, चीन चाहेगा कि भारत क्षेत्रीय संघर्षों में उलझा रहे, जिससे उसके वित्तीय और सैन्य संसाधन खत्म हो जाएंगे. इसलिए, भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय तक सैन्य टकराव बीजिंग के लिए एक Win-Win Situation है. अगर पाकिस्तान को नुकसान होता है, तो चीन को इसकी ज्यादा परवाह नहीं है. और अगर भारत को भारी नुकसान होता है, तो चीन निर्विवाद क्षेत्रीय आधिपत्य हासिल कर लेगा.

स्टॉकहोम यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. इश्तियाक अहमद ने अपनी किताब पाकिस्तान – द गैरीसन स्टेट: ओरिजिन्स, इवोल्यूशन, कॉन्सिक्वेंसेस (1947-2011) में तर्क दिया है कि पाकिस्तान का जन्म अपने आकाओं के उद्देश्य को पूरा करने के लिए हुआ था. अहमद का दावा है कि ब्रिटिश लोग जिन्ना की अलग देश की मांग पर सहमत हुए क्योंकि मुस्लिम लीग ने ‘उन्हें कराची बंदरगाह और उत्तर में एक हवाई अड्डा देने’ का वादा किया था.

अंग्रेजों का मानना था कि भारत और रूस से आने वाले खतरे से बचने के लिए उन्हें पाकिस्तान और उसकी सेना की जरूरत होगी. ब्रिटेन ने अमेरिका को इस बात का आश्वासन दिया कि रूस और भारत के खिलाफ पाकिस्तान एक सहयोगी हो सकता है.

एक बार जो गुलाम बन गया, वह हमेशा गुलाम ही रहता है. इसलिए, भले ही राजनीति में बदलाव हुआ हो, पाकिस्तान अपने असली आकाओं के हितों की सेवा करना जारी रखे हुए है और विडंबना यह है इस बार उसका आका चीन है.

चीन क्या चाहता है?

अगर भारत पाकिस्तान के साथ उलझता रहता है तो चीन को कई रणनीतिक लाभ होंगे. इससे लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीन को चुनौती देने की भारत की क्षमता कम हो जाएगी. इससे एक और बड़ा फायदा यह भी होगा कि भारत अपने सैन्य संसाधनों को चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से हटा देगा.

एक और बात कि, अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध में चीन अपने बाजार का विस्तार करना चाहता है. पाकिस्तान के साथ लड़ाई में भारत कम प्रतिस्पर्धी हो जाएगा जिससे चीन क्षेत्र में व्यापार और निवेश पर हावी हो सकता है. वो भारत के पड़ोसी देशों के बंदरगाहों और व्यापारिक मार्गों जैसे अहम इंफ्रास्ट्रक्चर पर नियंत्रण कर सकता है जैसे कि वो अपने प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए कर रहा है.

इन सब बातों पर गौर करते हुए चीन एक छिपा हुए शत्रु हो सकता है जो भारत को युद्ध में घसीटना चाहता है. चीन खुद भारत से युद्ध नहीं करना चाहता बल्कि वो उस डफर स्टेट से युद्ध करा रहा है जो यह समझने से इनकार करता है कि वो अपने आकाओं का कठपुतली मात्र है.

संदेह के घेरे में चीन

भारतीय और पाकिस्तानी विमानों के बीच हवाई लड़ाई और गिरे हुए मिसाइलों और ड्रोन के मलबे से मिले सबूतों से पता चलता है कि पाकिस्तान भारत से लड़ने के लिए चीनी हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है. पंजाब और पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर के कुछ हिस्सों में आतंकी ढांचे पर भारतीय हमलों के जवाब में, पाकिस्तान ने JF-17 ब्लॉक III और J-10CE लड़ाकू विमानों के साथ PL-15E मिसाइलों को तैनात किया था.

बाद में, भारतीय ठिकानों पर हमले के लिए पाकिस्तान ने HQ-9 मिसाइल सिस्टम का इस्तेमाल किया. HQ-9, और PL-15 E मिसाइलें और उनका प्लेटफॉर्म J-10CE सभी चीनी प्रोडक्ट्स हैं. भारत के खिलाफ इन चीनी हथियारों का इस्तेमाल सैन्य संघर्ष में पहली बार किया गया. इसी तरह, JF-17 को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर बनाया है जिसका इस्तेमाल हुआ है.

पाकिस्तान को यह मौन समर्थन कई चीनी हितों की पूर्ति करता है. यह पाकिस्तान को मजबूत तो करता ही है, साथ ही यह चीन को भारतीय प्रतिष्ठानों का आकलन करने में मदद करता है.

यहां इस बात पर गौर करना जरूरी है कि संघर्ष शुरू होने के बाद से चीन की हथियार बनाने वाली कंपनियों के शेयरों में उछाल आया है. इसका मतलब है कि चीनी शेयर बाजार मानता है कि अगर संघर्ष बढ़ता है तो चीन पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई करना जारी रखेगा.

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