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कटघोरा में खिसकती भाजपा की जमीन,छत्रपाल वोटकटवा की भूमिका में

0 कोरबा जिले से एकमात्र बागी कांग्रेसी पर कार्यवाही शीघ्र

कोरबा। विधानसभा निर्वाचन 2023 के पहले चरण के लिए आज 20 विधानसभा क्षेत्र में जहां मतदान की कार्रवाई चल रही है वहीं दूसरी तरफ 70 विधानसभा में 17 नवंबर को मतदान होना है। इनमें कोरबा जिला भी शामिल है जहां चुनावी सरगर्मी अब अपने शबाब पर है। मतदाता इस समय दीपावली त्योहार की तैयारियों में लगे हैं खमोश हैं। जिन्हें 17 नवंबर को मतदान केंद्रों में जाकर प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने भी इंतजार है तो वहीं दूसरी तरफ प्रत्याशियों की धड़कनें भी तेज हैं। संबंधित संगठनों के पदाधिकारियों में भी हलचल मची हुई है और वह अपने-अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। प्रचार-प्रसार का अभियान कहीं उफान पर है तो कहीं कमजोर। दूसरी ओर कुछ प्रत्याशियों को लेकर यह उधेड़बुन खुद संगठन के नेताओं में है कि वह अपनी सीट बचा पाएगा या नहीं।
इनमें कटघोरा विधानसभा की भाजपा और पाली तानाखार विधानसभा से जोगी कांग्रेस प्रमुख है। कटघोरा से चुनाव लड़ रहे भाजपा के उम्मीदवार प्रेमचंद पटेल को टिकट मिलने के साथ ही इसे स्थानीय कार्यकर्ताओं ने चौंकाने वाला निर्णय माना कि जो जिला पंचायत क्षेत्र में भी निष्क्रिय है, ऐसे कार्यकर्ता को टिकट दिया गया। टिकट वितरण के कुछ दिन बाद ही नाराज कुछ भाजपाईयों ने प्रेस वार्ता कर संजय शर्मा के प्रति अपने निष्ठा जाहिर की। भाजपा का एक बड़ा धड़ा,पालिका के प्रतिनधि भी प्रेमचंद पटेल के साथ नहीं है। हालांकि प्रेमचंद अपने सामाजिक वोट का भी दावा करते हैं लेकिन इसकी भी गारंटी नहीं कि उन्हें पूरा-पूरा पटेल समाज का समर्थन मिल जाए। अगर वे समर्थन का दावा करते भी हैं तो क्या भाजपा सिर्फ पटेल समाज के वोटों के सहारे अपने प्रत्याशी को जीतने का सपना दिखा रही है! कटघोरा में प्रमुख नेताओं ने प्रेमचंद पटेल के जनसंपर्क अभियान से दूरियां बना रखी है। यहां चुनाव संचालक ज्योतिनंद दुबे को बनाया गया है जो पहले अपना ही चुनाव हार चुके हैं। वे पूरे मनोयोग से काम करते नहीं दिख रहे हैं हालांकि उन्हें नजर आना जरूरी है और वह कुछ आयोजनों में पहुंच भी रहे हैं लेकिन उनका अंतर्मन प्रेमचंद के लिए कुछ खास साथ नहीं दे रहा है। क्षेत्र में खासी पकड़ रखने वाले पूर्व जिला अध्यक्ष पवन गर्ग भी लगभग दूरी बनाए हुए हैं। कटघोरा से भाजपा की टिकट के दावेदार वरिष्ठ नेता केदारनाथ अग्रवाल भी टिकट नहीं मिलने के बाद कटघोरा छोड़ कोरबा में नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर कटघोरा विधानसभा की तस्वीर यही है कि यहां भाजपा अपने आप को तीसरे या चौथे नंबर पर खड़ा पाएगी क्योंकि आंतरिक विरोध भी जबरदस्त है।

इसी तरह पाली तानाखार विधानसभा में जोगी कांग्रेस की लुटिया डुबाने के लिए छत्रपाल सिंह कंवर कमर कसे हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस से टिकट मांगी थी और टिकट नहीं मिलने पर जोगी कांग्रेस का दामन थाम लिया और उसकी टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।।स्थानीय सूत्रों की मानें तो छत्रपाल सिंह यहां राजनीतिक जनाधार ज्यादा नहीं रखते और वह वोटकटवा की भूमिका में नजर आ रहे हैं। कंवर समाज का भी वोट उन्हें कुछ खास मिलता नजर नहीं आ रहा। यही हाल कोरबा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे पूरन और रामपुर विधानसभा से जोगी कांग्रेस के उम्मीदवार बालमुकुंद राठिया का भी है। यह दोनों भी अपने-अपने क्षेत्र में महज वोट कटवा की भूमिका निभाते दिख रहे हैं।

0 जल्द संगठनात्मक कार्रवाई के आसार
छत्रपाल सिंह कांग्रेस संगठन की कार्रवाई के रडार में है और शीघ्र ही उन पर निष्कासन का डंडा चल सकता है पिछले दिनों ही संगठन ने 6 बागियों निष्कासित किया है जो कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं छत्रपाल सिंह पर भी ऐसी कार्रवाई जल्द होने की संभावना है। वे कोरबा जिले से एकमात्र से उम्मीदवार हैं जो कांग्रेस से घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी धर्मपत्नी कांग्रेस के समर्थन से जिला पंचायत कोरबा में अध्यक्ष हैं और पति बगावत किये हुए हैं।

0 कांग्रेस-बीजेपी की हालत खराब किए है गोंगपा : पाली-तानाखार विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी दुलेश्वरी सिदार और भाजपा उम्मीदवार रामदयाल उइके को गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अध्यक्ष एवं प्रत्याशी तुलेश्वर सिंह मरकाम सीधी टक्कर दे रहे हैं। तुलेश्वर इन दोनों उम्मीदवारों की हालत खराब किए हुए हैं और बहुजन समाज पार्टी का गोगपा को समर्थन मिलने से वह काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस को जहां अपने परंपरागत वोटों का भरोसा है तो वहीं दौड़ में शामिल जिन लोगों को टिकट नहीं मिली है वह उनके लिए खंदक का काम कर रहे हैं। रामदयाल उइके का मानना है कि उन्होंने पिछले 5 वर्षों में अपने लिए खोदी गई खाई को पाटने का भरसक प्रयास किया है। उइके इससे पहले भी 5 साल क्षेत्र में विधायक रह चुके हैं लेकिन उनके कार्यकाल को जनता ने पसंद नहीं किया और 2018 के चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसक गए। उइके यहां अपनी जमीन फिर से तलाश करने की कवायद कर रहे हैं तो दुलेश्वरी सिदार कुर्सी बचाये रखने की जद्दोजहद में हैं।

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